अन्न, जल और वायु हमारे जीवन के आधार हैं । सामान्य मनुष्य प्रतिदिन औसतन १ किलो अन्न और २ किलो जल लेता है परंतु इनके साथ वह करीब १०,००० लीटर (१२ से १३.५ किलो) वायु भी लेता है । इसलिए स्वास्थ्य की सुरक्षा हेतु शुद्ध वायु अत्यंत आवश्यक है ।
प्रदूषणयुक्त, ऋण-आयनों की कमीवाली एवं ओजोन रहित हवा से रोगप्रतिकारक शक्ति का ह्रास होता है व कई प्रकार की शारीरिक-मानसिक बीमारियाँ होती हैं ।
पीपल का वृक्ष दमानाशक, हृदयपोषक, ऋण-आयनों का खजाना, रोगनाशक, आह्लाद व मानसिक प्रसन्नता का खजाना तथा रोगप्रतिकारक शक्ति बढानेवाला है । बुद्धु बालकों तथा हताश-निराश लोगों को भी पीपल के स्पर्श एवं उसकी छाया में बैठने से अमिट स्वास्थ्य-लाभ व पुण्य-लाभ होता है । पीपल की जितनी महिमा गाएं, कम है । पर्यावरण की शुद्धि के लिए जनता-जनार्दन एवं सरकार को बबूल, नीलगिरी (यूकेलिप्टस) आदि जीवनशक्ति का ह्रास करनेवाले वृक्ष सड़कों एवं अन्य स्थानों से हटाने चाहिए और पीपल, आँवला, तुलसी, वटवृक्ष व नीम के वृक्ष दिल खोल के लगाने चाहिए । इससे अरबों रुपयों की दवाइयों का खर्च बच जायेगा । ये वृक्ष शुद्ध वायु के द्वारा प्राणिमात्र को एक प्रकार का उत्तम भोजन प्रदान करते हैं । पूज्य बापूजी कहते हैं कि “ये वृक्ष लगाने से आपके द्वारा प्राणिमात्र की बड़ी सेवा होगी ।” यह लेख पढने के बाद सरकार में अमलदारों व अधिकारियों को सूचित करना भी एक सेवा होगी । खुद वृक्ष लगाना और दूसरों को प्रेरित करना भी एक सेवा होगी ।
पीपल : यह धुएँ तथा धूलि के दोषों को वातावरण से सोखकर पर्यावरण की रक्षा करनेवाला एक महत्त्वपूर्ण वृक्ष है । यह चौबीसों घंटे ऑक्सीजन उत्सर्जित करता है । इसके नित्य स्पर्श से रोग-प्रतिरोधक क्षमता की वृद्धि, मनःशुद्धि, आलस्य में कमी, ग्रह पीड़ा का शमन, शरीर के आभामंडल की शुद्धि और विचारधारा में धनात्मक परिवर्तन होता है । बालकों के लिए पीपल का स्पर्श बुद्धिवर्धक है । रविवार को पीपल का स्पर्श न करें ।
आँवला : आँवले का वृक्ष भगवान विष्णु को प्रिय है । इसके स्मरणमात्र से गौदान का फल प्राप्त होता है । इसके दर्शन से दुगना और फल खाने से तिगुना पुण्य होता है । आँवले के वृक्ष का पूजन कामनापूर्ति में सहायक है । कार्तिक में आँवले के वन में भगवान श्रीहरि की पूजा तथा आँवले की छाया में भोजन पापनाशक है । आँवले के वृक्षों से वातावरण में ऋणायनों की वृद्धि होती है तथा शरीर में शक्ति का, धनात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
आँवले से नित्य स्नान पुण्यमय माना जाता है और लक्ष्मीप्राप्ति में सहायक है । जिस घर में सदा आँवला रखा रहता है वहाँ भूत, प्रेत और राक्षस नहीं जाते ।
तुलसी : प्रदूषित वायु के शुद्धीकरण में तुलसी का योगदान सर्वाधिक है । तुलसी का पौधा उच्छ्वास में स्फूर्तिप्रद ओजोन वायु छोड़ता है, जिसमें ऑक्सीजन के दो के स्थान पर तीन परमाणु होते हैं । ओजोन वायु वातावरण के बैक्टीरिया, वायरस, फंगस आदि को नष्ट करके ऑक्सीजन में रूपांतरित हो जाती है । तुलसी उत्तम प्रदूषणनाशक है । फ्रेंच डॉ. विक्टर रेसीन कहते हैं : ‘तुलसी एक अद्भुत औषधि है । यह रक्तचाप व पाचनक्रिया का नियमन तथा रक्त की वृद्धि करती है ।’
वटवृक्ष : यह वैज्ञानिक दृष्टि से पृथ्वी में जल की मात्रा का स्थिरीकरण करनेवाला एकमात्र वृक्ष है । यह भूमिक्षरण को रोकता है । इस वृक्ष के समस्त भाग औषधि का कार्य करते हैं । यह स्मरणशक्ति व एकाग्रता की वृद्धि करता है । इसमें देवों का वास माना जाता है । इसकी छाया में साधना करना बहुत लाभदायी है । वातावरण-शुद्धि में सहायक हवन के लिए वट और पीपल की समिधा का वैज्ञानिक महत्त्व है ।
नीम : नीम की शीतल छाया कितनी सुखद और तृप्तिकर होती है, इसका अनुभव सभी को होगा । नीम में ऐसी कीटाणुनाशक शक्ति मौजूद है कि यदि नियमित नीम की छाया में दिन के समय विश्राम किया जाय तो सहसा कोई रोग होने की सम्भावना ही नहीं रहती । नीम के अंग-प्रत्यंग (पत्तियाँ, फूल, फल, छाल, लकडी) उपयोगी और औषधियुक्त होते हैं । इसकी कोपलों और पकी हुई पत्तियों में प्रोटीन, कैल्शियम, लौह और विटामिन ‘ए पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं ।
नीलगिरी के वृक्ष भूल से भी न लगायें, ये जमीन को बंजर बना देते हैं । जिस भूमि पर ये लगाये जाते हैं उसकी शुद्धि १२ वर्ष बाद होती है, ऐसा माना जाता है । इसकी शाखाओं पर ज्यादातर पक्षी घोंसला नहीं बनाते, इसके मूल में प्रायः कोई प्राणी बिल नहीं बनाते, यह इतना हानिकारक, जीवन-विघातक वृक्ष है । हे समझदार मनुष्यों ! पक्षी एवं प्राणियों जितनी अक्ल तो हमें रखनी चाहिए । हानिकर वृक्ष हटाओ और तुलसी, पीपल, आँवला आदि लगाओ ।