भगवान के अवतार के तीन मुख्य प्रयोजन हैं-
- परितृणाय साधुना : साधु स्वभाव के लोगों का, सज्जन स्वभाववाले लोगों का रक्षण करना।
- विनाशाय च दुष्कृताम् : जब समाज में बहुत स्वार्थी, तामसी, आसुरी प्रकृति के कुकर्मी लोग बढ़ जाते हैं तब उनकी लगाम खींचना।
- धर्मसंस्थापनार्थाय : धर्म की स्थापना करने के लिए अर्थात् अपने स्वजनों को, अपने भक्तों को तथा अपनी ओर आने वालों को अपने स्वरूप का साक्षात्कार हो सके इसका मार्गदर्शन करना।
- भगवान के अवतार के समय तो लोग लाभान्वित होते ही हैं किंतु भगवान का दिव्य विग्रह जब अन्तर्धान हो जाता है, उसके बाद भी भगवान के गुण, कर्म और लीलाओं का स्मरण करते-करते हजारों वर्ष बीत जाने के बाद भी मानव समाज लाभ उठाता रहता है।
- जिस समय समाज में खिंचाव, तनाव व विषयों के भोग का आकर्षण जीव को अपनी महिमा से गिराते हैं, उस समय प्रेमाभक्ति का दान करने वाले तथा जीवन में कदम कदम पर आनंद बिखेरने वाले श्रीकृष्ण का अवतार होता है। श्रीकृष्ण का जन्मदिवस या अवतार ग्रहण करने का पावन दिवस ही जन्माष्टमी कहलाता है। जन्माष्टमी तुम्हारा आत्मिक सुख जगाने का, तुम्हारा आध्यात्मिक बल जगाने का पर्व है। जीव को श्रीकृष्ण-तत्त्व में सराबोर करने का त्यौहार है। तुम्हारा सुषुप्त प्रेम जगाने की दिव्य रात्रि है।
- अवतरति इति अवतारः अर्थात् जो अवतरण करे, ऊपर से नीचे जो आवे उसका नाम अवतार है।